भाजपा: वापसी की तैयारी?

Courtesy: The Print
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ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव में मिली हताशा से भाजपा यानी भारतीय जनता पार्टी वापस लौट आयी है. हरियाणा के चुनाव परिणाम से भाजपा को अच्छी सीख मिली है. ऐसा कहा जाता है कि कुछ लोग मोदीजी को सलाह देते रहे थे कि वह अपनी पुरानी लाइन नहीं छोड़ें और “सबका साथ, सबका विकास” वाले फार्मूले पर जोर न दें, पर मोदीजी ने तय कर लिया था कि वह देश की 140 करोड़ जनता की ही बात करते रहेंगे. इसीलिए उन्होंने मुसलमानों के लिए समान भाव रखा और तीन तलाक़ जैसी कुरीति को हटाने में लग गए. इसके अलावा गरीबों को आवास, पीने का पानी, गैस का कनेक्शन, बिजली,आयुष्मान योजना आदि के द्वारा देश के तमाम हिन्दू और मुसलमान के लिए समान रुप से व्यवस्था कराते रहे. लेकिन मुसलमानों ने सारी सुविधाएं लेकर भी भाजपा को वोट देना मुनासिब नहीं समझा. वे तमाम मौलानाओं और ओवैसी, तौकीर रज़ा जैसे भड़काऊ नेताओं की ही लाइन पर चलते रहे. लेकिन क्योंकि मोदीजी की छवि गुजरात के कारण एक हिन्दू नेता की तरह ही प्रचारित की गयी थी, तो जब 2014 में वह केंद्र की राजनीति में प्रकट हुए तो ज्यादातर हिन्दुओं ने उन्हें सिर पर बिठा लिया और पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की सरकार केंद्र में बनी. उसके बाद उनका पाकिस्तान के प्रति और जम्मू – कश्मीर के प्रति रुख देखकर और भरोसा जगा. हिन्दू और भी एकजुट हो गया. धारा 370 और 35 ए को हटाना, यह भरोसा और भी मजबूत कर गया कि यह आदमी कड़े फैसले ले सकता है. यही कारण था कि 2019 में और भी बड़े बहुमत से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी. 

और यहीं से कांग्रेस हताश होने लगी. उसके बाद भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई में भी तेजी आने लगी और जब कई नेताओं पर भी कार्रवाई होने लगी तब मोदी के विरोध में तमाम भ्रष्ट नेताओं की गोलबंदी शुरू हुई. उन्हें भय सताने लगा कि मोदी दिनोदिन और मजबूत होता जा रहा है और यह किसीको छोड़ेगा नहीं. इसलिए इन सबने इंडी अलायंस के नाम पर एक गठजोड़ बनाया. पर इनका दुर्भाग्य कि इस गठजोड़ के ज्यादातर नेताओं ने राहुल जैसे अपरिपक्व को अपना नेता मान लिया. और राहुल के वामपंथी सलाहकारों ने परदे के पीछे से नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया. उसके बाद संविधान खतरे में और हिन्दुओं को बांटने के लिए जातिगत जनगणना का प्रचार शुरू किया. यह प्रचार बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से चलाया गया. इसमें मोदी को गालियां देने वाले और उनसे नफरत करने वालों का पूरा गिरोह सक्रिय हुआ. पत्रकारों का एक पूरा पैनल तैयार किया गया और सोशल मीडिया के द्वारा देश भर में हिन्दुओं को बांटने का खेल शुरू किया गया. उप्र में अखिलेश ने अपनी जाति, यादवों को और मुस्लिम वोटरों को उकसाया. देश के अनेक भागों में हिन्दू अपनी अपनी जातियों में बंट गए. इसी कारण 2024 में मोदी के “सबका विकास” वाला फार्मूला धीमा पड़ गया. भाजपा और मोदी को ऐसा लगता था कि जब वह देश के करोड़ों गरीब लोगों को मुफ्त अनाज दे रहे हैं, स्वास्थ्य की गारंटी कर रहे हैं, गरीब लोगों को घर वगैरह दे रहे हैं, तो वे वोट उन्हें ही देंगे. लेकिन वे समझ नहीं सके कि इस देश में करोड़ों लोग अहसान फरामोश भी हैं. वे विकास और सुविधा से ज्यादा ऊपर अपने धर्म और अपनी जाति को रखते हैं. भाजपा के लोगों ने हिन्दू एकता का मूल मंत्र करीब भुला दिया था. नतीजा सामने आया और भाजपा 240 सीटों पर सिमट कर रह गयी और खुद मोदी भी बनारस जैसे हिन्दू शहर से मात्र डेढ़ लाख वोट से ही चुनाव जीत पाए. उप्र में अखिलेश का प्रचार और बाकी जगहों पर राहुल का झूठ काम कर गया. वह तो गनीमत रही कि बिहार ने साथ दिया और चंद्रबाबू नायडू अडिग रहे और मोदी तीसरी बार पीएम बन सके.

भाजपा में इसपर गहन चर्चा हुई और योगीजी की बात लोगों को समझ में आ गयी. 4 जून के बाद से ही योगीजी बेहद सक्रिय हो गए और खुले तौर पर हिन्दू एकता का झंडा लेकर चल पड़े.

हरियाणा और जम्मू कश्मीर का चुनाव आते आते भाजपा के कार्यकर्ताओं ने भी समझ लिया कि जाति के नाम पर राहुल समाज में वैमनस्य पैदा कर रहे हैं, उसके खिलाफ हिन्दू एकता की बात करना जरुरी है. इसी बीच वक्फ बोर्ड की तानाशाही को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया. इसके विरोध में तमाम मौलाना और ओवैसी जैसे लोग सक्रिय हुए तब कुछ हिन्दुओं की आँख खुली. यह बात हरियाणा के लोगों ने भी समझी. यही कारण है कि जिस तरह लोकसभा के चुनाव के समय सारे आकलन फेल हो गए थे, इस बार भी फेल हो गए. और भाजपा की तीसरी बार सरकार बन गयी.

इस ऐतिहासिक जीत से भाजपा के तमाम कार्यकर्ता नए जोश में हैं, क्योंकि जम्मू में भी वे वोट प्रतिशत में पहले नंबर पर हैं और उमर अब्दुल्ला को भी धारा 370 पर अपनी लाइन बदलनी पड़ी है. वे केंद्र से मिलजुल कर सरकार चलाने की बात कहने लगे हैं.

अभी तुरंत बाद महाराष्ट्र और झारखण्ड में चुनाव होना है. उसके तुरंत बाद दिल्ली में और उसके बाद बिहार में भी चुनाव होना है. हरियाणा में कांग्रेस की हार के बाद से ही इंडी वालों ने कांग्रेस को औकात बताना शुरू कर दिया है. दूसरी तरफ भाजपा ने और जोश से काम करना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही मोदीजी ने भी अपनी लाइन बदल दी है और उनके वक्तव्य बताते हैं कि वे भी खुलकर हिन्दू एकता का समर्थन करने लगे हैं. यही नहीं, आर एस एस के प्रमुख मोहन भागवत भी खुलकर संदेश देने लगे हैं. जाहिर है, अगर गांव गांव जाकर संघ के कार्यकर्ता इसी लाइन पर सक्रिय हो गए तो भाजपा एक नयी ताकत के रुप में उभरेगी और यही भाजपा की असली वापसी तय भी करेगी…